जब से वैज्ञानिकों को गोमूत्र में अधिक मात्रा में फायदेमंद एंटीबायोटिक तत्व मिले हैं तब से मुस्लिम धर्म के तरफ से ऊंट के मूत्र को भी जबरन दवाई घोषित कर दिया गया है. परंतु इसका सेवन केवल अंधविश्वासी मुसलमान ही कर रहे हैं. आखिर ऐसा क्यों है? आखिर मुसलमान ऊंट का मूत्र क्यों पीते हैं? चलिए जानिए.
आज हम इस्लाम से जुड़े एक अन्य रोचक तथ्य के बारे में बताने जा रहे हैं. यह रोचक तथ्य आपको काफी शर्मनाक और वाहियात लग सकता है परंतु मुसलमानों के लिए यह रोचक ही होता है.
ऊंट का मूत्र

आपको जानकारी होगी कि मुस्लिमों के द्वारा भारतीय लोगों को गोमूत्र पीने वाला कह कर मजाक बनाने का प्रयास किया जाता रहा है. यह वही लोग थे जिन्हें बायो विज्ञान के बारे में कोई जानकारी नहीं. क्योंकि गाय के मूत्र का सेवन नहीं किया जाता बल्कि वैद्य या फिर औषधि बनाने वाले संस्थान उससे एंटीबायोटिक तत्वों को निकालकर की औषधियां बनाते हैं.
ऊंट के मूत्र में गोमूत्र से ज्यादा एंटीबायोटिक होने का दावा
जब गोमूत्र में एंटीबायोटिक तत्व पाए जाने पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा चली तब सऊदी अरेबिया के मुसलमानों ने ऊंट के मूत्र को भी औषधि बता दिया असल में उन्होंने औषधि बताया ही नहीं बल्कि वह ऊंट के मूत्र का सेवन भी करते हैं. दावा किया गया ऊंट के मूत्र में अत्यधिक मात्रा में एंटीबायोटिक तत्व पाए जाते हैं. कहा गया कि ऊंट के मूत्र का सीधा सेवन करने से तो बहुत फायदा होता है.
क्या कहती है जांच?

ऊंट के मूत्र में दवाई के तत्व वाले दावे की जांच भी हो चुकी है जिसमें साफ हुआ है कि यह दावा बिलकुल झूठा है. ऊंट के मूत्र में किसी भी प्रकार के एंटीबायोटिक तक तो नहीं पाए जाते बल्कि वायरस होते हैं. जिनकी वजह से कुछ दिनों या महीनों में व्यक्ति बीमार अवश्य पड़ जाता है.
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि ऊंट का मूत्र पीने से सांस संबंध बीमारी मर्स हो सकती है। इसलिए इसे किसी भी हालत में नहीं पीना चाहिए।
मोहम्मद साहब ने पिया
अब जांच का विषय यह था कि आखिर सऊदी अरेबिया, भारत और अन्य देशों के मुसलमान इस प्रकार का मूर्खतापूर्ण दावा क्यों कर रहे थे. असल में मुस्लिमों के पैगंबर मोहम्मद रेगिस्तान में रहते थे जहां पानी की कमी की वजह से उन्हें मजबूरी में इस प्रकार अपनी प्यास बुझाने का इंतजाम करना पड़ता था.
जहां पानी नहीं मिलता था वहां मुहम्मद और उसके लोग ऊंट और बकरियों के मूत्र का सेवन करते थे. इसी वजह से मोहम्मद के कट्टर समर्थकों अर्थात मुसलमानों ने भी इसे पीना शुरू कर दिया. चूँकि हर कोई ऊंट नहीं पाल सकता इसलिए बकरी से मुस्लिमो का लगाव भी इसी का एक कारण है.
Source: Hindi Webduniya